जल पषान के पूजते, सरा न एकौ काम।
पलटू तन करु देहरा, मन करु सालिगराम॥1॥
सीस नवावै संत को, सीस बखानौ सोय।
पलटू जो सिर न नवै, बेहतर कद्दू होय॥2॥
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचो नीर॥3॥
पलटू मन मूआ नहीं, चले जगत को त्याग।
ऊपर धोए क्या भया, भीतर रहिगा दाग॥4॥
गारी आई एक से, पलटे भई अनेक।
जो पलटू पलटै नहीं, रहै एक की एक॥5॥