पगी प्रेम नंदलाल के, हमें न भावत जोग।
मधुप राजपद पाइ कै, भीख न माँगत लोग॥1॥
बढ़त-बढ़त बढ़ि जाइ पुनि, घटत-घटत घटि जाइ।
नाह रावरे नेह-बिधु, मंडल जितौ बनाइ॥2॥
फूलति कली गुलाब की, सखि यह रूप लखैन।
मनों बुलावति मधुप कों, दै चुटकी की सैन॥3॥
देखि परे नहिं दूबरी, सुनियें स्याम सुजान।
जानि परे परजंक में, अंग आँच अनुमान॥4॥
हँसत बाल के बदन में, यों छवि कछू अतूल।
फूली चंपक बेलि तें, झरत चमेली फूल॥5॥
मेरी मति में राम हैं, कवि मेरे मतिराम।
चित मरो आराम में, चित मेरे आराम॥6॥