चरणदास के अनमोल दोहे - 1

सन्त चरणदास (१७०६ - १७८५) भारत के योगाचार्यों की श्रृंखला में सबसे अर्वाचीन योगी के रूप में जाने जाते है। आपने 'चरणदासी सम्प्रदाय' की स्थापना की।

चरनदास यों कहत हैं, सुनियो संत सुजान।

मुक्तिमूल आधीनता, नरक मूल अभिमान॥1॥


सदगुरु शब्दी लागिया नावक का सा तीर।

कसकत है निकसत नहीं, होत प्रेम की पीर॥2॥


यह सिर नवे न राम कू, नाहीं गिरियो टूट।

आन देव नहिं परसिये, यह तन जायो छूट॥3॥


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