हिन्दी अर्थसहित २५ दोहे

हाल ही मे जोड़े गए २५ दोहों का हिन्दी भाषा में अर्थ इस पृष्ठ पर दिया गया है।

  1. बिन स्वारथ कैसे सहे, कोऊ करुवे बैन।

    लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन॥

    उपर्युक्त दोहा वृंददास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » कवि वृंद का कहना है कि बिना स्वार्थ के कोई भी व्यक्ति कड़वे वचन नहीं सहता। कड़वा वचन सभी को अप्रिय होता है लेकिन स्वार्थी लोग उसे भी चुपचाप सुन लेते हैं, जैसे गाय के लात/पैर की मार खाने के बाद भी इंसान उसे दूलारता और पुचकारता है क्योंकि दूध उसी से मिलना है।


  2. जोरू-लड़के खुस किये, साहेब बिसराया।

    राह नेकी की छोड़िके, बुरा अमल कमाया॥

    उपर्युक्त दोहा मलुकदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » मलूकदास जी कहते हैं कि आजकल लोग सांसारिक सुखों/विषयों में बुरी तरह लिप्त हो चुके हैं, ईश्वर की आराधना तो भूल ही गए हैं। अपनी पत्नी और बच्चों को खुश करने में ईश्वर को ही भूल गए, नेकी का मार्ग छोड़ लोग बुरे व्यसनों से ग्रसित हो रहें हैं।


  3. करत निपुनई गुन बिना, ‘रहिमन’ निपुन हजूर।

    मानहुं टेरत बिटप चढि, मोहि समान को कूर॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » कुछ व्यक्ति बुद्धिमानों के सामने बिना किसी गुण और निपुणता के होते हुये भी अपनी बड़ाई और डींगे हाँकते फिरते है। उन्हें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह वृक्ष पर चढ़कर यह घोषणा कर रहा हो कि मेरे समान कोई दूसरा मूर्ख नहीं है ।


  4. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

    ‘रहिमन’ मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » रहीमदास समझाते हुए बताए हैं कि हमें एक कार्य पर अपना ध्यान आकर्षित करना चाहिए, उसे पूर्ण करने के पश्चात ही दूसरों कार्यों में हाथ डालना चाहिए। यदि सब कार्यों में एक साथ हाथ डाला, तो एक भी काम पूरा न होगा। पेड़ की जड़ को सींचकर ही उसके फूलों और फलों को पाया जा सकता है।


  5. ‘रहिमन’ रहिबो वह भलो, जौं लौं सील समुच।

    सील ढील जब देखिए, तुरंत कीजिए कूच ॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » जब तक की शील और सम्मान बना रहे तभी तक वहाँ रहना उचित है। शील-सम्मान में ढील आने पर उसी वक्त वहाँ से कूच कर देना चाहिए।


  6. रहिमन तब लगि ठहरिए, दान, मान, सनमान।

    घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » रहीम के अनुसार किसी स्थान पर उतनी ही देर तक ठहरना चाहिए जब तक वहां दान, मान और सम्मान मिले। जब महसूस हो कि मान-सम्मान घट रहा है, तो तुरंत वहां से पलायन करना चाहिए। अपने आत्मसम्मान कि रक्षा हमें स्वयं करनी चाहिए।


  7. गोल मटोल और छोटा मोटा, हरदम वह जमी पर लोटा।

    खुसरो कहे नहीं है झूटा, जो ना बूझे अकिल का खोटा॥

    उपर्युक्त दोहा अमीर ख़ुसरो जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » इस पहेली का जवाब है - लोटा (एक बर्तन)


  8. दया, गरीबी, बन्दगी, समता सील निधान।

    तेते लक्षण संत के, कहत कबीर सुजान॥

    उपर्युक्त दोहा कबीरदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » संत कबीरदास जी कहते दया, गरीबी, बंदगी, समता और शील ये संतों के गुण हैं।


  9. ससि संकोच, साहस, सलिल, मान, सनेह रहीम।

    बढ़त-बढ़त बढ़ि जात है, घटत-घटत घटि सोम ॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » रहीम बताते हैं कि कुछ चीजों के बढ़ने और घटने कि सीमा नहीं होती है। जैसे चन्द्रमा, संकोच, साहस, जल, सम्मान और स्नेह, ये सब जब बढ़ते हैं तो बढ़ते ही जाते हैं और जब घटना आरंभ होता है तो घटने की हद पार कर जाते हैं।


  10. देनहार कोउ और है , भेजत सो दिन रैन।

    लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » रहीम कवि के साथ साथ से बड़े दानी भी थे। एक बार कवि गंग ने रहीम से पूछा- "रहीम! आपकी आँखें दान देते समय झुकी क्यों रहती हैं? जबकि दान-दाताओं कि नजरें तो गर्व से उठी रहती हैं।" रहीम ने इस दोहे में उनका जवाब दिया- "हम कहाँ किसी को कुछ देते हैं। देने वाला तो कोई और ही है, जो दिन-रात भेजता रहता है इन हाथों से दिलाने के लिए। लोगों को व्यर्थ ही भरम हो गया है कि रहीम दान देता है। मेरे नेत्र इसलिए नीचे को झुके रहते हैं कि माँगनेवाले को यह भान न हो कि उसे कौन दे रहा है, और दान लेकर उसे दीनता का अहसास न हो।"


  11. प्रीती बहुत संसार में, नाना विधि की सोय।

    उत्तम प्रीती सो जानियो, सतगुरु से जो होय॥

    उपर्युक्त दोहा कबीरदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » संसार में अनेक प्रकार की प्रीति लोग निभाते और प्रदर्शित करते हैं, वह भी अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए। कबीर कहते हैं कि ऐसी प्रीती में स्थायीपन नहीं होता और जल्द ही खत्म हो जाती है। उत्तम प्रीति वहीं है जो सद्गुरु स्वामी से हो, सद्गुरु की कृपा से अच्छे गुणों का आगमन होता है।


  12. ऊजल पाहिनै कपड़ा, पान सुपारी खाय।

    कबीर गुरु भक्ति बिन, बांधा जमपूर जाय॥

    उपर्युक्त दोहा कबीरदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » उज्जवल सुन्दर कपड़े पहन और पान सुपारी खाकर लोग खुद को अच्छा और श्रेष्ठ जताने का प्रयास करते हैं, किन्तु यह पहनावा और दिखावा व्यर्थ है। संत कबीर दास जी कहते हैं कि जो प्राणी सद्गुरू की भक्ति नहीं करता और विषय वासनाओं में लिप्त रहता है, उसे यमलोक में नरक रुपी यातनाएँ सहना होता है।


  13. कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।

    कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

    उपर्युक्त दोहा बिहारीलाल जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » बिहारी जी ने उस नायिका की मन:स्थिति का चित्रण किया है जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका को इतना लम्बा संदेश भेजना है कि वह कागज पर समा नहीं पाएगा। लेकिन अपने संदेशवाहक के सामने उसे वह सब कहने में शर्म भी आ रही है। नायिका संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे अत्यंत करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह देना।


  14. धनि रहीम गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।

    जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौर को भाय॥

    उपर्युक्त दोहा रहीमदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » रहीमदास कहते है प्रेम भी कई तरह के हैं, कहीं कहीं अगाध लगाव तो कहीं अलगाव दिखता है। मछ्ली और पानी का प्रेम में अद्भुत लगाव है, धन्य है मछली की प्रीति! प्रेमी/पानी से विलग होकर उसपर अपने प्राण न्यौछावर कर देती है। दूसरी तरफ भौरा और फूल का प्रेम अलगाव दर्शाता है, भौरा जीते जी ही प्रियतम कमल को छोड़कर अन्यत्र उड़ जाता है।


  15. मंदमती जड़ मूढ़, करे निंदा जो पर की।

    बाहर भरमें फिरे, डगर भूले निज घर की॥

    उपर्युक्त दोहा गंगादास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » गंगादास जी ने सत्य ही कहा है कि दूसरों की निंदा करने वाला व्यक्ति मंदबुद्धि और महामूर्ख होता है। ऐसे लोग बाहर घूमते फिरते हैं परंतु अपने घर की ही डगर भूल जाते हैं। अर्थात ऐसे लोगों को सदा दूसरों में ही दोष नज़र आते हैं और खुद की कोई कमी व गलती नहीं याद आती है।


  16. काहू से नहि राखिये, काहू विधि की चाह।

    परम संतोषी हूजिये, रहिये बेपरवाह॥

    उपर्युक्त दोहा चरणदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » संत चरणदास कहते हैं कि किसी भी अन्य मनुष्य से किसी प्रकार की चाहत नहीं करनी चाहिए। अपने अंदर संतोष का भाव पालकर बेपरवाह मनुष्य ही इस संसार में सुखी रह सकता है।


  17. जा घर साधु संचरै, रुचि कर भोजन लेइ।

    बखना ताके भवन की, नौ ग्रह चौकी देइ॥

    उपर्युक्त दोहा बखना जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » संत बखना ने कहा है कि जिस घर में साधू संतों का आवागमन हो और उन्हें उनकी रुचि अनुरूप सात्विक भोजन दिया जाता है, उस घर पर सारे नवग्रहों (सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु) का शुभ आशीष सदैव बना रहता है।


  18. एक थाल मोती से भरा, सबके सिर पर औंधाा धरा।

    चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे॥

    उपर्युक्त दोहा अमीर ख़ुसरो जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » इस पहेली का जवाब है - आकाश (आसमान थाल है और तारे उसमे भरे हुये मोती)


  19. पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी, याद पड़ै जब नाम।

    लगन महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम॥

    उपर्युक्त दोहा पलटूदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » संत पलटूदास के अनुसार हर एक वह पल शुभ होता है जिसमें ईश्वर का नाम और भक्ति शामिल हो। हम हमेशा शुभ मुहूर्त का इंतजार करते हैं कुछ अच्छा करने के लिए जबकि हर घड़ी हर दिन शुभ होता है। अतः शुभ लग्न, मुहुर्त और घड़ी का इंतजार करना व्यर्थ है, ऐसे में हमारे कार्य बनने के बजाय बिगड़ जाते हैं।


  20. सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार।

    प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार॥

    उपर्युक्त दोहा दादूदयाल जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » दादू दयाल जी कहते हैं कि प्राण रूप वृक्ष अर्थात हम इंसान, ईश्वर की दया और सतगुरु के सत्य उपदेश को पीकर मुक्ति रूपी फल प्राप्त करते हैं। सतगुरु की संगति से इस शरीर रूपी वृक्ष में ईश्वर भक्ति पनपती है और परमात्मा अपने दया रूपी जल से इसका सिंचन करते हैं।


  21. मोह काहे मन में भरे, प्रेम पंथ को जाए।

    चली बिलाई हज्ज को, नौ सो चूहे खाए॥

    उपर्युक्त दोहा अमीर ख़ुसरो जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » भक्ति प्रेम की राह पर मोह का परित्याग आवश्यक है। आमिर ख़ुसरो कहते हैं, यदि आप प्रेम और भक्ति के मार्ग पर मोह माया भी साथ लेकर चलते हो तो मंजिल पर पहुंच पाना मुश्किल है। यह तो वही बात हुई कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।


  22. खेलत बालक ब्याल संग, मेला पावक हाथ।

    तुलसी सिसु पितु मातु ज्यों, राखत सिय रघुनाथ॥

    उपर्युक्त दोहा तुलसीदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » तुलसीदास जी कहते हैं कि जब छोटे बच्चे सांप के साथ खेल रहे होते हैं, अपने हाथ आग की ओर ले जाते हैं तो मां-बाप तुरंत ही उन्हें रोक लेते हैं। उसी प्रकार सियारामजी माता-पिता बनकर तुलसीदासरुपी शिशु को विषयरूपी जहरीले सांप और अग्नि से बचा लेते हैं।


  23. फरीदा खाकु न निंदीऐ, खाकू जेडु न कोइ।

    जीवदिआ पैरा तलै, मुइआ उपरि होइ॥

    उपर्युक्त दोहा बाबा फरीद जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » बाबा फरीद कहते हैं कि मिट्टी/ख़ाक की बुराई कदापि न करें, क्योंकि उसके जैसा और कोई नहीं है। जब तक आप जिंदा रहते हो वह आपके पैरों तले होती है किंतु मृत्यु होने पर मिट्टी तले दब जाते हो। अर्थात तुच्छ समझे जाने वाली वस्तुओं की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि समय बदलते देर नहीं लगती।


  24. मूए ते जिउ जाय जहाँ, जीवत ही लै राखो तहाँ।

    जियते जियरे जो कोऊ मुआ, सोई खेलै परम निसंक हुआ॥

    उपर्युक्त दोहा अलखदास जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » सूफी कवि अलखदास (शेख अब्दुल कुद्दूस गंगोही) ने मरजीवा भाव स्पष्ट करते हुए कहा है कि प्रभु के प्रति अनन्य प्रेम की स्थिति ही भक्त के ह्रदय में मरजीवा/मर्जीया भाव उतपन्न करती है. योगी के महासुख चक्र में प्रवेश करने की स्थिति को मर्जीया भावः स्वीकार करते हैं जहाँ मृत्यु का स्पर्श नहीं है। मर्जीया की अवस्था तक पहुँचने के लिए पहले मरण अर्थात रूप लोक का अभाव आवश्यक है. यह "मर-जिया" अर्थात मरकर फिर जीवित होने की अवस्था है।


  25. नहिं संजम नहिं साधना, नहिं तीरथ व्रत दान।

    मात भरोसे रहत है, ज्यों बालक नादान॥

    उपर्युक्त दोहा दयाबाई जी का है, इस दोहे का हिन्दी भावार्थ भी पढ़ें।
    » दयाबाई कहती हैं कि ईश्वर पर अटूट विश्वास होना चाहिए और यही विश्वास हमें हर प्रकार के कष्टों से दूर रखेगा। जैसे नादान बालक अपनी मां के भरोसे रहते हैं और उन्हें किसी भी तरह का संयम, साधना, तीर्थ या व्रत करने की आवश्यकता नहीं होती है।


संतों और कवियों के दोहा काव्य

कबीरदास - रहीमदास - मलुकदास - वृंददास - तुलसीदास - रसखान - बिहारीलाल - नागरीदास - दरियाव - परसराम - ध्रुवदास - चरणदास - गरीबदास - बखना - रज़्जब - बोधा - अग्रदास - गुरुनानक - दादूदयाल - अमीर ख़ुसरो - रैदास - मलिक मोहम्मद जायसी - पलटूदास - नाभादास - सम्मन - मुंज - रसलीन - अन्य/अज्ञात - मतिराम - देव - दयाबाई - सहजोबाई - भिखारी दास - सरहपा - अलखदास - बाबा फरीद - चर्पटीनाथ - तोष - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र - गंगादास - मुबारक अली बिलग्रामी - केशवदास - सुंदरदास - गुरु गोविंद सिंह - गुरुदत्त सिंह भूपति - दुलह - देवसेन - पीपा - गोपालदास नीरज - बैरीसाल - रसनिधि - गंगाधर - फ़िराक़ गोरखपुरी - उदयभानु हंस - मुंशी रहमान खान - रूपसाहि - रत्नावली देवी - घाघ - राजिया -

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