यह बहुत ही लोकप्रिय छंद है, भारत के अनेक कवियों और संतों ने इस काव्य शैली को विकसित करने में अपना पर्याप्त योगदान दिया है। दोहा काव्य रचना हिन्दी कि अनेक उपभाषाओं जैसे- अवधी, ब्रज, मैथली, मारवाड़ी, भोजपुरी, मगही, बघेली, कन्नौजी, बुंदेली खड़ीबोली आदि में की गईं हैं।
आपने कई कवियों और संतों के दोहे तो अवश्य पढ़ें होगें और अनुभव किया होगा कि यह काव्य रचनाएँ सरल, मधूर और याद करने में भी आसान होतीं हैं। कई संत कवियों ने अपने दोहों मे सामाज को रूढ़ियों और कुरुतियों को ना अपनाने की बात बताई, कई संत कवि भक्ति भाव मे लीन होकर भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है तो अन्य कवियों ने प्रेम काव्य भी लिखें हैं। महान संतों द्वारा रचित ये दोहे आध्यात्मिक, ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायी और कटु सत्य होते हैं।
रचयिता
हिन्दी काव्य साहित्य मे दोहे का विशेष महत्व है, इस काव्य शैली के प्रसिद्ध रचनाकार कबीरदास, गुरुनानक, तुलसीदास, दादूदयाल, खुसरो, जायसी, रसखान, रहीमदास, वृंददास, बिहारीलाल, रैदास, गरीबदास, भिखारीदास, पलटूदास, नागरीदास, दरियाव, चरनदास, ध्रुवदास, मलुकदास, परशुराम, देवदत्त, चंदबरदाई, मंझन, कुतुबन, अलखदास, मतिराम, बखना, रज़्जब, बोधा, मुंज, अग्रदास जैसे महान कवि हैं।कवयित्री/ महिला रचनाकार
दयाबाई, सहजोबाई आदि ने दोहा काव्य के माध्यम से अपने विचार लोगों के बीच प्रकट किये।